अंक आठ वाले जातक धीरे धीरे उन्नति करते हैं,और उनको सफ़लता देर से ही मिल पाती है.परिश्रम बहुत करना पडता है,लेकिन जितना किया जाता है उतना मिल नही पाता है,जातक वकील और न्यायाधीश तक बन जाते हैं,और लोहा,पत्थर आदि के व्यवसाय के द्वारा जीविका भी चलाते हैं.दिमाग हमेशा अशान्त सा ही रहता है,और वह परिवार से भी अलग ही हो जाता है,साथ ही दाम्पत्य जीवन में भी कटुता आती है.अत: आठ अंक वाले व्यक्तियों को प्रथम शनि के विधिवत बीज मंत्र का जाप करना चाहिये.तदोपरान्त साढे पांच रत्ती का नीलम धारण करना चाहिये.ऐसा करने से जातक हर क्षेत्र में उन्नति करता हुआ,अपना लक्ष्य शीघ्र प्राप्त कर लेगा.और जीवन में तप भी कर सकेगा,जिसके फ़लस्वरूप जातक का इहलोक और परलोक सार्थक होंगे. शनि प्रधान जातक तपस्वी और परोपकारी होता है,वह न्यायवान,विचारवान,तथा विद्वान भी होता है,बुद्धि कुशाग्र होती है,शान्त स्वभाव होता है,और वह कठिन से कठिन परिस्थति में अपने को जिन्दा रख सकता है.जातक को लोहा से जुडे वयवसायों मे लाभ अधिक होता है.शनि प्रधान जातकों की अन्तर्भावना को कोई जल्दी पहिचान नही पाता है.जातक के अन्दर मानव परीक्षक के गुण विद्यमान होते हैं.शनि की सिफ़्त चालाकी,आलसी,धीरे धीरे काम करने वाला,शरीर में ठंडक अधिक होने से रोगी,आलसी होने के कारण बात बात मे तर्क करने वाला,और अपने को दंड से बचाने के लिये मधुर भाषी होता है.दाम्पत्यजीवन सामान्य होता है.अधिक परिश्रम करने के बाद भी धन और धान्य कम ही होता है.जातक न तो समय से सोते हैं और न ही समय से जागते हैं.हमेशा उनके दिमाग में चिन्ता घुसी रहती है.वे लोहा,स्टील,मशीनरी,ठेका,बीमा,पुराने वस्तुओं का व्यापार,या राज कार्यों के अन्दर अपनी कार्य करके अपनी जीविका चलाते हैं.शनि प्रधान जातक में कुछ कमिया होती हैं,जैसे वे नये कपडे पहिनेंगे तो जूते उनके पुराने होंगे,हर बात में शंका करने लगेंगे,अपनी आदत के अनुसार हठ बहुत करेंगे,अधिकतर जातकों के विचार पुराने होते हैं.उनके सामने जो भी परेशानी होती है सबके सामने उसे उजागर करने में उनको कोई शर्म नही आती है.शनि प्रधान जातक अक्सर अपने भाई और बान्धवों से अपने विचार विपरीत रखते हैं,धन का हमेशा उनके पास अभाव ही रहता है,रोग उनके शरीर में मानो हमेशा ही पनपते रहते हैं,आलसी होने के कारण भाग्य की गाडी आती है और चली जाती है उनको पहिचान ही नही होती है,जो भी धन पिता के द्वारा दिया जाता है वह अधिकतर मामलों में अपव्यय ही कर दिया जाता है.अपने मित्रों से विरोध रहता है.और अपनी माता के सुख से भी जातक अधिकतर वंचित ही रहता है.

पौराणिक संदर्भ:
शनि के सम्बन्ध मे हमे पुराणों में अनेक आख्यान मिलते हैं.माता के छल के कारण पिताने उसे शाप दिया.पिता अर्थात सूर्य ने कहा,"तू क्रूरतापूर्ण द्रिष्टि देखने वाला मंदगामी ग्रह हो जाये".यह भी आख्यान मिलता है कि शनि के प्रकोप से ही अपने राज्य को घोर दुर्भिक्ष से बचाने के लिये राजा दसरथ उनसे मुकाबला करने पहुंचे तो उनका पुरुषार्थ देख कर शनि ने उनसे वरदान मांगने के लिये कहा.राजा दसरथ ने विधिवत स्तुति कर उसे प्रसन्न किया.पद्म पुराण में इस प्रसंग का सविस्तार वर्णन है.ब्रह्मवैवर्त पुराण में शनि ने जगत जननी पार्वती को बताया है कि मैं सौ जन्मो तक जातक की करनी का फ़ल भुगतान करता हूँ.एक बार जब विष्णुप्रिया लक्ष्मी ने शनि से पूंछा कि तुम क्यों जातकों को धन हानि करते हो,क्यों सभी तुम्हारे प्रभाव से प्रताडित रहते हैं,तो शनि महाराज ने उत्तर दिया,"मातेश्वरी,उसमे मेरा कोई दोष नही है,परमपिता परमात्मा ने मुझे तीनो लोकों का न्यायाधीश नियुक्त किया हुआ है,इसलिये जो भी तीनो लोकों के अंदर अन्याय करता है,उसे दंड देना मेरा काम है".एक आख्यान और मिलता है,कि किस प्रकार से ऋषि अगस्त ने जब शनि देव से प्रार्थना की थी,तो उन्होने राक्षसों से उनको मुक्ति दिलवाई थी.जिस किसी ने भी अन्याय किया,उनको ही उन्होने दंड दिया,चाहे वह भगवान शिव की अर्धांगिनी सती रही हों,जिन्होने सीता का रूप रखने के बाद बाबा भोले नाथ से झूठ बोलकर अपनी सफ़ाई दी और परिणाम में उनको अपने ही पिता की यज्ञ में हवन कुंड मे जल कर मरने के लिये शनि देव ने विवश कर दिया,अथवा राजा हरिश्चन्द्र रहे हों,जिनके दान देने के अभिमान के कारण सप्तनीक बाजार मे बिकना पडा और,शमशान की रखवाली तक करनी पडी,या राजा नल और दमयन्ती को ही ले लीजिये,जिनके तुच्छ पापों की सजा के लिये उन्हे दर दर का होकर भटकना पडा,और भूनी हुई मछलियां तक पानी मै तैर कर भाग गईं,फ़िर साधारण मनुष्य के द्वारा जो भी मनसा,वाचा,कर्मणा,पाप कर दिया जाता है वह चाहे जाने मे किया जाय या अन्जाने में,उसे भुगतना तो पडेगा ही.
मत्स्य पुराण में महात्मा शनि देव का शरीर इन्द्र कांति की नीलमणि जैसी है,वे गिद्ध पर सवार है,हाथ मे धनुष बाण है एक हाथ से वर मुद्रा भी है,शनि देव का विकराल रूप भयावना भी है.शनि पापियों के लिये हमेशा ही संहारक हैं. पश्चिम के साहित्य मे भी अनेक आख्यान मिलते हैं,शनि देव के अनेक मन्दिर हैं,भारत में भी शनि देव के अनेक मन्दिर हैं,जैसे शिंगणापुर ,वृंदावन के कोकिला वन,ग्वालियर के शनिश्चराजी,दिल्ली तथा अनेक शहरों मे महाराज शनि के मन्दिर हैं.


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